इंतज़ार..!

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तुम्हे याद है कुछ वर्ष पहले जब तुम घर आये थे
और हमने बगीचे से कुछ आम चोरी किये थे
बो बैठक वाले कमरे में छुपाये थे तुमने शायद
एक दिन माँ को झाड़ू लगाते वक़्त मिल गए थे
और तुम्हे देहरी रोगन करने की सजा मिली थी
रोगन करते करते तुमने कितने आम खा डाले थे
और फेंक दी थी गुठलियां कुछ यहाँ कुछ वहां
वहीँ किसी कोने से आम का एक पेड़ निकला है
माँ उसे कभी कभी तुम्हारे नाम से भी बुलाती है
पड़ोस के बच्चे अब उसपे उछल कूद करते है
रस्सी का झूला डाल के सारा दिन झूलते हैं
उन्हें देखता हूँ खेलते हुए तो तुम्हारी याद आती है
अरसा हो चला है तुम्हारी चिट्ठी भी नही आई
वक़्त मिले तो लिखना सरहद पे सब कैसा है !

~विनय

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