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  • यादों का बाज़ार…!

    वो नदी का किनारा याद है जहाँ इत्तेफ़ाकन ही सही कुछ यादें छोड़ आये थे तुम कभी आओ और देखो वहां यादों का बाज़ार लगता है ऐसा कोई वक़्त मुक़र्रर नहीं लेकिन हाँ जब दिल में टीस हो और नींद आधी हो या न हो मौसम में नमी हो और रास्तो पे फिसलन ठीक ठाक […]

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  • लेखक हो क्या… ?

    हर रोज नया कुछ लिखते हो लेखक हो क्या ? एक लाइन लिखते हो फिर खा जाते हो नाख़ून दो चार इधर उधर ढूंढते हो क्या शब्द भी भला ऐसे मिल जाते हैं मुझे तो ऐसे पुराने जूते तक नहीं मिलते । जाने क्या बड़बड़ाते हो जब नींद में औंधे होते हो फिर उठते हो, […]

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  • तुम नही समझ पाओगे..!

    तुम कश्ती नही समझते तुम बरसात नही समझ पाओगे तुम मोहब्बत नही समझते तुम ज़ज्बात नही समझ पाओगे धुआँ उठा है कहीं दूर बस्तियों से सबको जाने दो, तुम नही जाना देखो तुम पानी नही समझते तुम आग नही समझ पाओगे वो हवाएँ हैं, कुछ उड़ाती भी हैं तो उड़ाने दो, अरे जाने दो तुम […]

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  • पुराना घर और बरसात..!

    पुराना घर और बरसात का मौसम एक रिश्ता सा निभाते हैं जैसे क़ि मैं और तुम बहुत गुस्सा हो या बहुत प्यार पुराना घर टपकता है तुम्हारी आँखों की तरह बरसात बेशक मेरे जैसी होगी मगर वो मैं तो नही मैं तो फ़िक्र करता हूँ तुम्हारी बरसता भी हूँ तो बस घड़ी दो घड़ी मुझे […]

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  • मैं गाँव में रहता हूँ…!

    जी हुज़ूर, मैं गाँव में रहता हूँ आपके शहर से मीलो दूर एक रेलगाड़ी, दो बस एक तांगा और फिर डेढ़ मील पैदल चलकर ढलान से थोड़ा नीचे उतरकर बायीं और मुड़कर एक नीम का पेड़ आता है उसी की छाँव में रहता हूँ जी हुज़ूर, मैं गाँव में रहता हूँ । जहाँ रिश्ते अब […]

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  • सब शहर में हैं !

    दुकानदारी या रोजगारी कड़कते नोट और खनकती रेजगारी बहकते लोग और उनकी मक्कारी सुना है सब शहर में हैं खाली जेबें और बढ़ती जिम्मेदारी टूटती सड़कें और उनकी ठेकेदारी पुरानी रेलगाड़ी पे हरदम बढ़ती सवारी सुना है सब शहर में है छोटे से कंधे पे चढ़ती दुनियादारी लोग जितने हैं घरो में उतनी बिमारी गांव […]

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  • बोलो खरीदोगे क्या.. ?

    जहाँ एक उम्र भर रुके थे तो कुछ देर और ठहर जाओ बात बस जुबान पर है जो अब निकली की तब निकली मैं बस जल्दी से कह दूंगा तुम जाओ पर सुनकर चले जाओ बात कुछ यूँ है की कुछ जरुरत आ पड़ी है जेब खाली है और घर में सामां बहुत है कुछ […]

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  • उम्र भर की टीस..!

    आज फिर से धूप गीली हुयी एक बरसात के बाद तर व तर सी थी घबराई हुई सी गुजरी गली से चुराते आँखें जाने कितनो से मैंने देखा उसे उन कंपकपाते हाथों से थामे हुए दामन अपना पैमाने भर के कपड़े में थरथराती हुई सी चेहरे पे कई नक़्शे बिन देखे अनजाने से थे निगाहें […]

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  • तीसरे पहर की नींद…!

    वो तीसरे पहर की नींद और किवाड़ की झिर्री से आती हुई हवा साथ ले आती है धुप की खुश्बू और चिड़ियों का आवारापन मेरे कानों तक वो दलहान में टपकती बूँदें और टूटी कड़ियों में बढ़ती हुई दीमक सब मेरी रियासत का हिसाब देंगे ज़मानों तक ख्वाब जो जेबों में भरकर सोये थे हर […]

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  • तोहफा …!

    चन्द कल्पनाओ के फूल कुछ सपने और एक मुस्कराती सी बारिश हाथों से तराशा हुआ एक चाँद और कुछ सितारे ताज़ी बर्फ से बनाके सोचता हूँ तोहफा दूं तुम्हें एक हँसी का शहर एक मुस्कराने की वजह और कागज पे तराशी हुई दो चमकदार आँखें और रूई के फाये से बने बरसते बादल सोचता हूँ […]