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  • ख्वाब …!

    ख्वाब जो थोड़े से हैं चल आधे आधे बाँट ले ! सारे उजाले रखना तू सारे अँधेरे मेरे हों हर शाम मेरी हो मगर सारे सवेरे तेरे हों ! चल बाँट ले रुस्वाइयां चल बाँट ले तन्हाईयाँ आ बाँट ले ये धुप भी चल बाँट ले परछाइयाँ ! ख्वाब जो थोड़े से हैं चल आधे […]

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  • तस्वीर …!

    कुछ वर्ष पहले बातों बातों जो एक तस्वीर फाड़ दी थी तुमने आज वक़्त मिला तुम्हारी याद आई तो जोड़ दी मैंने जिसमे समूची हैं सभी शक्लें सिवाए एक चेहरे के जहाँ पे रह गया है कोई पुरानी काई का धब्बा सोचता हूँ कलम से इसको मैं एक सूरत ही दे पाता मगर किस्से तो […]

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  • अखबार.. !

    सुबह हुई फिर अखबार आया लौटकर फिर से इतबार आया खबरें यहाँ की ख़बरें वहां की आ गयी छपके ख़बरें जहाँ की पलटता हूँ पन्नें पढ़ता हूँ खुद को वो ख़बरें जिनसे है महरूम दुनिया वो मेरे दिल में हैं और दिमागों में हैं कुछ बेचैन कड़ियों के धागों में हैं शिकवा ओ शिकायत इतनी […]

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  • गुठ्ठल सिक्के ..!

    गुठ्ठल से चंद सिक्के जो आये बाजार में ..बजूद खोजते हैं कभी इस दुकान में कभी उस दुकान में नक्शा भी मिट गया और दश्तखत भी चाहे इधर से देखो चाहे उधर से देखो लोहे का एक टुकड़ा चाहे जिधर से देखो ~विनय Vinay Kumar Gangwar http://www.mypoetrygarden.com

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  • कारखाना…!

    वो कारखाना जहाँ बस दोस्त बना करते थे वक़्त के साथ गुजर गया तारीख बन गया है ! रह गया है बस तो एक यादों का झुरमुट और बातों की मस्ती जिनसे बनाता हूँ वो धुन्धले से चेहरे वो मकड़ी के जाले कुछ तीखे समोसे और मीठी जलेबी ! वो बगीचो में मिलना साइकिल से […]

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  • कबूतर ..!

    अपने ही शह्र्र मे अकेले से हैं चंद सड़कें,गलियां और मेरा घर ! एक कबूतर और उसके दो बच्चे मेरी ज़िम्मेदारी हैं मेरे छज्जे पे रहते हैं किराया माफ़ है उनका ! दो चार दाने मेरे आँगन मे छोड़ जाते हैं किस्तों की तरह जब भी आते हैं वापस अपनी रोजगारी से ! ~विनय Vinay […]

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  • कस्त्तियाँ ..!

    कस्त्तियाँ यूँ तो बहुत चलाई थी समंदर मे मैने जब तक सड़क पे बरसात और किताबों मे पन्ने बाकी थे आज जब झरोखो से देखता हूँ तो एक बियाँवान सा नज़र आता है ! जमी बंजर है, रास्ते टूटे हैं और धूल उड़ा करती है वहाँ अबकी घर आओ तो एक बरसात लिए आना ! […]

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  • इंतज़ार..!

    तुम्हे याद है कुछ वर्ष पहले जब तुम घर आये थे और हमने बगीचे से कुछ आम चोरी किये थे बो बैठक वाले कमरे में छुपाये थे तुमने शायद एक दिन माँ को झाड़ू लगाते वक़्त मिल गए थे और तुम्हे देहरी रोगन करने की सजा मिली थी रोगन करते करते तुमने कितने आम खा […]

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  • पुरानी धूप का टुकड़ा..!

    उदासी के शहर मे कुछ सूखे हुए दरखतों पे सब दर्द बाँध के अपने बो मेरे गाँव आया है सफ़र से रु-ब-रु है वो,ठिकाने जानता है सब कोई कल कह रहा था की बो नंगे पावं आया है पता भी पूछता है अब मेरा मुझसे ही जाने क्यूँ बो मुझको जानता भी है मुझे पहचानता […]

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  • लम्हें !

    कुछ कलियाँ गुलाब की जो तोड़ के लाये थे लम्हे अब इंतज़ार में हैं खिलने को बेक़रार हैं फूलों की तरह लव जो बुदबुदाने को हैं तेरी आँखों में मुस्कराने को हैं बेताब हैं की रात गुजरे नया दिन हो और बने कोई किस्सा गुजरती नींद का हाथ में हाथ हो और आँखों में आँखें […]