आज फिर एक पुरानी किताब से मुलाकात हुई और कई किरदारों से तसल्ली से बात हुई कुछ किरदार जो बरसों से खामोश पन्नों में थे जिनसे मिलने कोई नहीं आया अब तक उनसे गुफ्तगू की तो जाना की दर्द की कितने गिरहें यूँ ही अनसुनी रहती हैं जिन्हें कोई नहीं पढ़ता किसी ने हंस के […]
Author: Vinay Kumar Gangwar
अब घर चलते हैं…!
चलो अब घर चलते हैं शाम होने को है सवेरा जो जेबों में भर के निकले थे खर्च हो गया सपने जो ओस की बूंदों से उठा लाये थे फिसल के माटी हो गए शायद चलो अब घर चलते हैं शाम होने को है दीये भी जला के रख दिए चौखट पे आओ अब इंतज़ार […]
बरसात भी देखो…!
तुमने शहर की गर्म हवाएँ तो देखी होंगी अब जो आये हो तो मेरे गांव की बरसात भी देखो तुमने बुलंद इमारतों की नुमाइश तो देखी होगी अब मेरे छप्पर से टपकते हुए हालात भी देखो यहाँ पेट में गुडगुड़ाती हुई भूख मिलेगी तुम्हे हर मोड़ में गिड़गिड़ाती हुई तकदीर पड़ी होगी लवों पे जुम्बिश […]
बाजार किश्तों पे…!
बाजार किश्तों पे है जो भी चाहो खरीदो यहाँ रिश्ते निभाने की दवा मिलती है सुना है की बोतल में ताज़ी हवा मिलती है झूठी कसमों से बचने के ताबीज़ मिलते हैं यहाँ किराये पर बफादारी सूद पर बफा मिलती है बाजार किश्तों पे है जो भी चाहो खरीदो यहाँ नफा मिलता है नुक्सान मिलता […]
बेघर उम्मीदें…!
शहर सुनसान जो हुआ रातें आवारा हो चली गुमशुदा हो गए वो जिनके ठिकाने थे बेघर जो हुई उम्मीदें अब फुटपाथ पे हैं आसमां पनाह देता है मगर हवाओँ का क्या जिनका हर झोका इन फुटपाथी चिरागों को बुझा देता है धूल की हर लहर ख्वाइशों को ढक देती है और फिर मौत होती है […]
खैर जाने दो ..!
पुर्जा पुर्जा खोल कर बिखेरी है ज़िन्दगी ज़मीं पे पड़े हैं अब सारे गम,सारी खुशियाँ मजबूरियाँ, जिनकी अहमियत शायद तब थी जब तक जुड़े थे तार सारे दूसरे हिस्सों से अब किस्सा कुछ यूँ है कि हर हिस्से में तड़प है न उड़ने की ख्वाइश और न गिरने का डर अब न कोई अपना है […]
कहानी खत्म होने को है..!
खेल का आखिरी घंटा किरदार मौन हैं सारे आँखों में एक इंतज़ार वो अब मरने वाला है और फिर कुछ देर तलक शोर होगा रोने का चिल्लाने का,जलते दीये को बुझाने का और करीबी लोगो को समझाने का जो उसके अपने हैं कुछ और पल जब तक धड़कने आखिरी जुम्बिश से नाता न तोड़ लें […]
फक्कड़ यार…!
जिसको पढ़नी दुनियादारी वो क्या जाने पान सुपारी नुक्कड़ फक्कड़ यार हमारे सुबह शाम या होये दुपहरी चिलम चमेली और रेडियो खिलती पानों की पिचकारी घेरा डेरा छुपी माचिसें नदी किनारे भैंस सवारी पत्ते सत्ते पऊआ सउआ नाई नौकर और पनवारी चोरी सोरी जिसकी तिसकी घर की चौखट पे दुत्कारी गप्पे सप्पे झूठी सच्ची लड़ने […]