शहर सुनसान जो हुआ
रातें आवारा हो चली
गुमशुदा हो गए वो
जिनके ठिकाने थे
बेघर जो हुई उम्मीदें
अब फुटपाथ पे हैं
आसमां पनाह देता है
मगर हवाओँ का क्या
जिनका हर झोका
इन फुटपाथी चिरागों
को बुझा देता है
धूल की हर लहर
ख्वाइशों को ढक देती है
और फिर मौत होती है
कुछ सपनों की
जो आँखों के अंधेरों में थे
वो लोग जो दिन के उजालों
तक सलामत थे
फिर आज बाजार में होंगे
और जो मिट गए
जमीं पे लिखे किसी
नाम की तरह
अब सरकारी फाइलों में होंगे
मुआबजा मंजूर होगा
मौत की भी कीमत लगेगी ।
~विनय