तुम कश्ती नही समझते
तुम बरसात नही समझ पाओगे
तुम मोहब्बत नही समझते
तुम ज़ज्बात नही समझ पाओगे
धुआँ उठा है कहीं दूर बस्तियों से
सबको जाने दो, तुम नही जाना
देखो तुम पानी नही समझते
तुम आग नही समझ पाओगे
वो हवाएँ हैं, कुछ उड़ाती भी हैं
तो उड़ाने दो, अरे जाने दो
तुम हालात नही समझते
तुम तूफान नही समझ पाओगे
वो खुदा है, ओट से पिलाता है
हर नमाज़ी को अपने
तुम साकी नही समझते
तुम शराब नही समझ पाओगे !
अंधेरा घना है मुड़ेंर पे धीरे चलो
ज़िंदगी नही ये क़ि फिर संभल जाओगे
अभी तुम शाम ही नही समझते
तुम रात नही समझ पाओगे !
तुम कश्ती नही समझते
तुम बरसात नही समझ पाओगे !
~विनय