मैं गाँव में रहता हूँ…!

जी हुज़ूर, मैं गाँव में रहता हूँ
आपके शहर से मीलो दूर
एक रेलगाड़ी, दो बस
एक तांगा और फिर डेढ़
मील पैदल चलकर
ढलान से थोड़ा नीचे उतरकर
बायीं और मुड़कर
एक नीम का पेड़ आता है
उसी की छाँव में रहता हूँ
जी हुज़ूर, मैं गाँव में रहता हूँ ।

जहाँ रिश्ते अब तक ज़िंदा हैं
सांस लेते हैं और धड़कते भी हैं
पुराने दिल में नए रक्त की तरह
आँखों में हया रहती है
चेहरे पे प्यार भी है
हर आदमी मोती भी है और धागा भी
आँगन में पायलों की छम छम है जहाँ
मैं घुँगरू हूँ माँ के पाँव में रहता हूँ
जी हुज़ूर, मैं गाँव में रहता हूँ ।

जहाँ पत्थरों का जंगल नहीं है
मिट्टी की खुश्बू उड़ा करती है
भँवरे भी हैं जहाँ
और तितलियाँ भी
मचलते तालाब भी हैं
और तैरती मछलियाँ भी
माझी भी है और उसकी नाव भी
हाँ मैं उसी किसी नाव में रहता हूँ
जी हुज़ूर, मैं गाँव में रहता हूँ ।
~विनय

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