सब शहर में हैं !

दुकानदारी या रोजगारी
कड़कते नोट और खनकती रेजगारी
बहकते लोग और उनकी मक्कारी
सुना है सब शहर में हैं

खाली जेबें और बढ़ती जिम्मेदारी
टूटती सड़कें और उनकी ठेकेदारी
पुरानी रेलगाड़ी पे हरदम बढ़ती सवारी
सुना है सब शहर में है

छोटे से कंधे पे चढ़ती दुनियादारी
लोग जितने हैं घरो में उतनी बिमारी
गांव के सारे बन्दर और उनके मदारी
सुना है सब शहर में हैं

नमक देश का तो देश से ही गद्दारी
नाम साहूकार मगर काम चोर चकारी
एक तोला मूंगफली की कीमत ईमानदारी
सुना है सब शहर में है ।
~विनय

Leave a Reply