जहाँ एक उम्र भर रुके थे
तो कुछ देर और ठहर जाओ
बात बस जुबान पर है
जो अब निकली की तब निकली
मैं बस जल्दी से कह दूंगा
तुम जाओ पर सुनकर चले जाओ
बात कुछ यूँ है
की कुछ जरुरत आ पड़ी है
जेब खाली है और घर में
सामां बहुत है
कुछ तुम लिए जाओ
कीमत चाहे फिर कभी देना
बस देने का वादा किये जाओ
सामां कुछ यूँ है
की मेरी शराफत जो इस शहर को
अब अच्छी नहीं लगती
वो जाने अनजाने लोगो से मोहब्बत
अब सच्ची नहीं लगती
पुराना शौक वो प्यासों को पानी पिलाने का..
इन सब में यहाँ मतलब ढूंढते हैं लोग,बोलो खरीदोगे क्या ?
कुछ पुराने पुरखों के फ़ोटो भी हैं
दीवारों पे यूँ ही लटक के
हिलते रहते हैं
मैं तो खुद अब उनके जैसा हूँ
हवा जब तेज़ होती है
तो किसी पेड़ सा हिलता हूँ
हो सकता है यहीं किसी दीवार पे मेरा भी आशियाना
तो सोचता हूँ क्यों न ये पुरखों वाली रवायत ही बेंच डालूं,
बोलो खरीदोगे क्या ?
अच्छा चलो ये हँसते खिलखिलाते
बाग़ ही खरीद लो
वो न खरीद पाओ तो थोड़ी सी नफरतों
की आग ही खरीद लो
या कुछ मुफ़्त चाहते हो तो ये रोज रोज
की दौड़ भाग ही खरीद लो
थोड़ी सी चालाकी,या थोड़े से गम और ईमान
भी तो है,बोलो खरीदोगे क्या ?
जहाँ एक उम्र भर रुके थे
तो कुछ देर और ठहर जाओ
बात बस जुबान पर है
जो अब निकली की तब निकली
मैं बस जल्दी से कह दूंगा
तुम जाओ पर सुनकर चले जाओ
~विनय