पुरानी धूप का टुकड़ा..!

उदासी के शहर मे कुछ सूखे हुए दरखतों पे
सब दर्द बाँध के अपने बो मेरे गाँव आया है
सफ़र से रु-ब-रु है वो,ठिकाने जानता है सब
कोई कल कह रहा था की बो नंगे पावं आया है

पता भी पूछता है अब मेरा मुझसे ही जाने क्यूँ
बो मुझको जानता भी है मुझे पहचानता भी है
कोई बचपन का है साथी मेरा हमदर्द सा है बो
पुरानी धूप का टुकड़ा माँगने छाँव आया है

उदासी के शहर मे कुछ सूखे हुए दरखतों पे
सब दर्द बाँध के अपने बो मेरे गाँव आया है !

~विनय

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