उम्र भर की टीस..!

fire

आज फिर से धूप गीली हुयी एक
बरसात के बाद
तर व तर सी थी घबराई हुई सी
गुजरी गली से
चुराते आँखें जाने कितनो से मैंने
देखा उसे
उन कंपकपाते हाथों से थामे हुए
दामन अपना
पैमाने भर के कपड़े में थरथराती
हुई सी
चेहरे पे कई नक़्शे बिन देखे
अनजाने से थे
निगाहें कितनों की कुरेद रही थी
बदन उसका
और रिसते हुए लावे से हर कोई
जल रहा था
फूंक डाली थी जाने कितनो ने
अपनी हसरत
और हसरतें फिर शराफत पे कुछ
भारी थी आज
रास्ते सारे तो यूँ जला गयी है
वो जाते जाते
अब कुछ रह गया है तो बस एक टीस
उम्र भर को
कि काश मैं ही कुछ देर को इंसान
हो जाता
तो शायद आज मेरी भी आबरू
सलामत होती..!!
~विनय

Leave a Reply