सफ़र के आखिरी नक़्शे में
सब धुन्धला सा है
थकन भी इस कदर हावी है
कि बस रहने दो
मंज़िलें अगर ला सको तो
ला के रख दो यहाँ
हौसलों को नींद आई है
अब इन्हें सोने दो
बाजार लुट गए सारे
जो ख्वाओं में थे
और चेहरे भी खुल के आ गए
जो हिजाबों में थे
चुरा के नज्में लाये हैं कमबख्त
इन्हें इल्म नहीं
किसी ने नस्तर चुभोए हैं
अल्फाजों में
सफों से दर्द बहते हैं
स्याही की तरह
अब जो दर्द मेरे सीने में भी है
तो जरा रहने दो
मंज़िलें अगर ला सको तो
ला के रख दो यहाँ
हौसलों को नींद आई है
इन्हें सोने दो
सफ़र के आखिरी नक़्शे में
सब धुन्धला सा है
थकन भी इस कदर हावी है
कि बस रहने दो ।
~विनय