फक्कड़ यार…!

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जिसको पढ़नी दुनियादारी
वो क्या जाने पान सुपारी
नुक्कड़ फक्कड़ यार हमारे
सुबह शाम या होये दुपहरी

चिलम चमेली और रेडियो
खिलती पानों की पिचकारी
घेरा डेरा छुपी माचिसें
नदी किनारे भैंस सवारी

पत्ते सत्ते पऊआ सउआ
नाई नौकर और पनवारी
चोरी सोरी जिसकी तिसकी
घर की चौखट पे दुत्कारी

गप्पे सप्पे झूठी सच्ची
लड़ने की पूरी तैय्यारी
घूम घूम कर आग लगाते
कितनी मुश्किल जिम्मेदारी

सूरज से भी शर्त लगाते
तारों से करते गद्दारी
बात बात में चाँद बेंचते
हमने देखे वो ब्यापारी

जिसको पढ़नी दुनियादारी
वो क्या जाने पान सुपारी
नुक्कड़ फक्कड़ यार हमारे
सुबह शाम या होये दुपहरी
~विनय

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