पुराना घर और बरसात का मौसम
एक रिश्ता सा निभाते हैं
जैसे क़ि मैं और तुम
बहुत गुस्सा हो या बहुत प्यार
पुराना घर टपकता है
तुम्हारी आँखों की तरह
बरसात बेशक मेरे जैसी होगी
मगर वो मैं तो नही
मैं तो फ़िक्र करता हूँ तुम्हारी
बरसता भी हूँ तो बस घड़ी दो घड़ी
मुझे छत की मिट्टी का इल्म है
और घर टूट जाने का डर भी
पुराना घर और बरसात का मौसम
एक रिश्ता सा निभाते हैं
जैसे क़ि मैं और तुम !
~विनय