चश्मदीद….!

तन्हाईयाँ बंद कर के लिफाफे में
सिराहने रख के सोया हूँ
तो तुम्हारे होने का एहसास भी है
और तुमसे मिलने की उम्मीद भी
मसला तुमसे किसी राबते का नहीं
बल्कि मुश्किल तो मेरी ज़िद्द है
जो न चाहो तो भी आड़े आती है
दायरों का वो कोना जो तुमने
चुन लिया है जरा शख्त है
हाथों में अब चरखियाँ रख कर
ढील देके थोड़ा बढ़ाते रहना
ये रिश्तों के मांझे जरा कच्चे पक्के
से हैं इनका पता नहीं चलता
कब किस पतंग से उलझेंगे और
तराश देंगे उँगलियों का वो कोना
जिसपे दायरे रख के तुमने एक
उम्र का जुगनू हवा में छोड़ दिया था
वो अब तुम्हारी याद बनकर
मेरे दलहान में अक्सर चमकता है
उजाले जो आँखों के किनारों से
डबडबा के गुजर जाते हैं
कई अनकहे सवालों के जवाब
जमीं पे गिर के बिखर जाते हैं
मैं पैरों की उँगलियों से खरोच के
बेनिशाँ करता हूँ, मिटाता हूँ उन्हें
जैसे वो किसी दर्द के गुनहगार हों
और किसी क़त्ल के चश्मदीद भी
तन्हाईयाँ बंद कर के लिफाफे में
सिराहने रख के सोया हूँ
तो तुम्हारे होने का एहसास भी है
और तुमसे मिलने की उम्मीद भी ।
~विनय

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