किताब …!

आज फिर एक पुरानी
किताब से मुलाकात हुई
और कई किरदारों से
तसल्ली से बात हुई
कुछ किरदार जो बरसों
से खामोश पन्नों में थे
जिनसे मिलने कोई नहीं
आया अब तक
उनसे गुफ्तगू की तो जाना
की दर्द की कितने गिरहें
यूँ ही अनसुनी रहती हैं
जिन्हें कोई नहीं पढ़ता
किसी ने हंस के हाल सुनाया
तो कोई मेरी ही आँखों से
जी भर के घंटो रोया
कुछ पन्नों से एक हंसी की
खुशबू आती है
मैं बार बार पलटता हूँ उन्हें
और महकने लगता हूँ
कुछ पन्नों में ख़्वाब भी मिले
अधूरे और बिखरे हुए
कुछ तो पन्नें पलटने में बिखरे
और गुम हो गए यहाँ वहां
कुछ किरदार जो बेहद
दिलचस्प थे उनके पन्नें
अब तक मुड़े हुए हैं किनारों से
जैसे कोई जीना चाहता है
इन पन्नों में लिखा हुआ
हर एक खूबसूरत पल शायद
किताब के आखिर पन्ने पे
चूहों की कुतरन भी है
जिसने मिटा डाले हैं कई अक्स
और वो दस्तखत भी
जिसकी कलम से ये सारे
किरदार मुकम्मल थे !
~विनय

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