कस्त्तियाँ ..!

kashti

कस्त्तियाँ यूँ तो बहुत चलाई थी
समंदर मे मैने
जब तक सड़क पे बरसात और
किताबों मे पन्ने
बाकी थे
आज जब झरोखो से देखता हूँ तो
एक बियाँवान सा
नज़र आता है !
जमी बंजर है, रास्ते टूटे हैं और धूल
उड़ा करती है वहाँ
अबकी घर आओ तो एक बरसात
लिए आना !
मैने पुराने बक्से से एक किताब और
ढूंड ली है
और चुरा के रख ली है एक खुर्पी भी
बगीचे से !
जब भी आओ तो पहले एक खत
भेज देना
मुझे वक़्त लगेगा ये रास्ते सुधारने मे !

~विनय

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