उड़ानें…!

हवाओं मे ठहराव क्या आया
सारी उड़ानें रद्द हो गयीं
कागज़ समेट कर फिर से
ताख में रख दिए हमने
अब हर तरफ बेचैनी है ।
वो सारी उमंगें जो जल्दबाज़ी
में थी अब इंतज़ार में हैं
हौसलों से उड़ सको तो उड़ो
किसने रोका है तुम्हें
या आओ बैठें किसी मुंडेर पे
सपने देखें उन जजीरो के
जहाँ तुम्हें जाना है एक दिन
उम्मीद है कि तुम्हारी साँसें
जो अब बेहद गर्म हैं
जला डालेंगी इन जंगलात को
और फिर शायद वो
आखिरी बरसात होगी
जो दरख्तों से होते हुए गुजरेगी
एक तूफ़ान की तरह
तुम्हारे चेहरे पे मुस्कान होगी
और मुझे डर होगा तुम्हें
अलविदा कहने का ।
~विनय

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